
प्रदेश में कांग्रेस में नई नियुक्तियों के माध्यम से वरिष्ठ व निष्ठावान नेताओं को किनारे किए जाने के संदेश से उपजे रोष के बीच पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत दिल्ली का रुख करना चाह रहे हैं।
उनकी यह इच्छा जताने के बाद से ही प्रदेश में कांग्रेस के भीतर उनके समर्थकों की बेचैनी बढ़ गई है। ऐसे में अंदेशा जताया जाने लगा है कि हरीश रावत से मिलने वाले ये संकेत कोई नया गुल खिलाते नजर आ सकते हैं।
पांचवीं विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की प्रदेश चुनाव अभियान के कमान संभाले रहे हरीश रावत हार के बाद से कई मौकों पर अपनी नई भूमिका तलाशते दिखाई दे रहे हैं। हरिद्वार में गंगा तट पर कुछ समय बिताने की इच्छा के बाद अब इंटरनेट मीडिया पर उन्होंने एक बार फिर अपनी पोस्ट में कहा कि उनका स्वास्थ्य और राजनीतिक स्वास्थ्य, दोनों ही स्थान परिवर्तन चाह रहे हैं, अर्थात उत्तराखंड से दिल्ली की ओर प्रस्थान किया जाए।
दिल्ली के बारे में सोचते हुए उन्होंने 1980 के बाद उन्हें दिल्ली में सहारा देने वाले प्रवासी बंधुओं, कर्मचारी व श्रमिक संगठनों के बहाने ललित माखन, रंगराजन कुमार मंगलम के साथ काम प्रारंभ करने की याद ताजा की।
उन्होंने पुराने व नए सक्रिय साथियों को साथ लेकर पुराना संगठन खड़ा करने की इच्छा भी जताई। कुमाऊं व गढ़वाल के प्रवासी बंधुओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि रामलीला, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और कई सामाजिक कार्यक्रमों के माध्यम से वह गढ़वाली व कुमाऊंनी भाइयों से जुड़े। गढ़वाल के व्यक्तियों से जुड़ाव बढ़ाने में उन्होंने पूर्व सांसद त्रेपन सिंह नेगी को भी याद किया।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के प्रवासियों में कांग्रेस का बड़ा दबदबा था। आज वह दबदबा भाजपा और आप का बन गया है। उन्होंने यह लालसा भी जताई कि वह दिल्ली में प्रवासियों में कांग्रेस को मजबूत करें।
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