जहां नियम के मुताबिक सबकुछ फिट ना बैठे तो जुगाड़ से सही किया जा सकता है। भले ही आप योग्य हो या नहीं। ऐसा ही उदाहरण उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में देखने को मिला है। एक पत्रकार की पत्नी को बिना योग्यता के असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त कर दिया गया है। उनके पास असिस्टेंट प्रोफेसर बनने की अनिवार्य योग्यता यूजीसी नेट और पीएचडी की डिग्री नहीं है। कमाल की बात यह भी है कि उनकी नियुक्ति ऐसे पद पर की गई है, जिस विषय की उनके पास डिग्री ही नहीं है। इस पद के लिए कोई विज्ञापन भी नहीं निकला गया था।
हाल ही में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय ने असिस्टेंट प्रोफेसर (अकेडमिक कंसल्टेंट) के 46 पदों पर भर्तियां की हैं। ये नियुक्तियां अस्थाई व्यवस्था के तहत छह माह के लिए की गई हैं। इनमें से शिक्षाशास्त्र विद्याशाखा में तीन पद विज्ञापित किये गये थे। दो पद शिक्षाशास्त्र विभाग में एक पद विशिष्ट शिक्षा में विज्ञापित किया गया था। नियमों के अनुसार शिक्षा शास्त्र विभाग में नियुक्ति के लिए नेट या पीएचडी अनिवार्य है। विशिष्ट शिक्षा में रिहैबिलिटेशन काउंसिल ऑफ इंडिया (आरसीआई) के नियमों के अनुसार नेट या पीएचडी न होने पर भी उम्मीदवार की नियुक्ति की जा सकती है। वहीं, यह कोई नियम नहीं है कि नेट या पीएचडी उम्मीदवार होने के बाद भी सिर्फ़ एमएड की डिग्री वाले की नियुक्ति कर दी जाए।
संबंधित मामले में विशिष्ट शिक्षा विभाग में एक पद के लिए विज्ञापन दिया गया था। एक पद पर उम्मीदवार का चयन भी हो गया। वहीं, बिना विज्ञापन के एक और पद पर एक पत्रकार की पत्नी को नियुक्त कर दिया गया। इस पद पर नियमानुसार सिर्फ विशिष्ट शिक्षा में मास्टर डिग्री प्राप्त उम्मीदवार का ही चयन हो सकता था। इस उम्मीदवार के पास विशिष्ट शिक्षा में कोई डिग्री नहीं है। वह सिर्फ़ बीएड और एमएड हैं। उन्होंने नेट या पीएचडी की परीक्षा भी पास नहीं की है।
शिक्षाशास्त्र विद्याशाखा के इंटरव्यू में बड़ी संख्या में नेट और पीएचडी डिग्री प्राप्त उम्मीदवार आये थे, लेकिन उनकी नियुक्ति न कर राजनीतिक पहुंच रखने वाले लोगों नियुक्ति कई सवाल खड़े करती है। कहा जाता है कि शिक्षा शास्त्र विद्याशाखा में इससे पहले भी अधिकांश नियुक्तियां अवैध तौर पर की गई हैं। इसमें विद्याशाला के निदेशक बनाये गये व्यक्ति के पास ही पद पर बने रहने के लिए अनिवार्य योग्यता नहीं है।
सबसे बड़ा सवाल ये है कि जब नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला गया तो संबंधित पोस्ट के लिए एक पद दर्शाया गया। इसके बाद इंटरव्यू हुआ और चयनीत लोगों सूची में भी उक्त महिला (पत्रकार की पत्नी) का नाम नहीं था। फिर जब नियुक्ति की सूची जारी की गई तो उसमें उसका नाम दर्ज कर लिया गया। सवाल ये है कि दूसरे पद के लिए क्या विज्ञापन निकाला गया। उक्त महिला का नाम अचानक फाइनल सूची में कहां से आ गया है। जब इस संबंध में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति ओम प्रकाश नेगी से बात करने का प्रयास किया गया तो, उनके मोबाइल पर घंटी बजने के बाद भी फोन रिसीव नहीं किया गया। वहीं, इस तरह की खबरें स्थानीय मीडिया से भी गायब हैं।