उत्तराखंड में पलायन के कारण निर्जन हुए गांवों में फिर से रौनक लौटेगी। इन्हें जीवंत बनाने के दृष्टिगत सरकार अब कसरत में जुट गई है। पर्यटन की दृष्टि से पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर प्रथम चरण में कुछ निर्जन गांवों को गोद देने की तैयारी है। गोद दिए जाने वाले पूरे गांव को होम स्टे कम होटल के रूप में विकसित किया जाएगा।
पर्यटन एवं पंचायती राज मंत्री सतपाल महाराज के अनुसार इस संबंध में कुछ प्रस्ताव आए हैं। इसे देखते हुए संबंधित प्रवासियों की सहमति समेत अन्य सभी पहलुओं का गहनता से अध्ययन चल रहा है। उन्होंने कहा कि जो भी निर्जन गांव गोद दिए जाएंगे, वहां भवनों का जीर्णाेद्धार परंपरागत पहाड़ी शैली में ही होगा, लेकिन भीतर आधुनिकता का समावेश रहेगा। गांवों से हो रहे पलायन के दंश को इसी से समझा जा सकता है कि अब तक शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका, वन्यजीवों का आतंक, सड़क समेत अन्य मूलभूत सुविधाओं का अभाव जैसे कारणों के चलते राज्य में 1726 गांव पूरी तरह निर्जन हो चुके हैं। पलायन निवारण आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से 24 गांव तो वर्ष 2018 से 2022 के मध्य खाली हुए। यही नहीं, ऐसे गांवों की भी अच्छी-खासी संख्या है, जिनमें आबादी अंगुलियों में गिनने लायक रह गई है। यद्यपि, सरकार पलायन की रोकथाम के लिए प्रयास कर रही है, लेकिन अभी लंबा रास्ता तय किया जाना बाकी है। इस बीच सरकार ने निर्जन हो चुके गांवों की रौनक लौटाने की भी ठानी है। पर्यटन एवं पंचायती राज मंत्री सतपाल महाराज के अनुसार निर्जन गांवों को गोद लेने के लिए कुछ लोगों को प्रेरित किया गया है। हमारा प्रयास है कि प्रथम चरण में ऐसे निर्जन गांव गोद दिए जाएं, जिनके आसपास से हिमालय समेत अन्य मनोरम नजारे दिखते हैं। गोद दिए जाने वाले पूरे गांव के भवनों का पहाड़ी शैली में जीर्णोंद्धार कराया जाएगा। सभी भवन होम स्टे कम होटल के रूप में विकसित किए जाएंगे।