विधानसभा में 228 नियुक्तियां रद होने के बाद कांग्रेस के भीतर अंतर्द्वंद्व बढ़ सकता है। पार्टी का प्रदेश संगठन इस मामले में सरकार पर हमलावर रहा है। साथ में अब तक रहे विधानसभा अध्यक्षों के साथ ही विभिन्न सरकारों को निशाने पर लेने में कोई हिचक नहीं दिखाई।
संगठन के इस सख्त रुख के दायरे में कांग्रेस की पिछली सरकारों के दौरान महत्वपूर्ण पदों पर रहे नेता, मुख्यमंत्री व मंत्री भी आ गए हैं। ये सभी कद्दावर नेता प्रदेश में कांग्रेस की दशा-दिशा तय करने में वर्तमान में भी महत्वपूर्ण भूमिका में हैं। इससे पार्टी के भीतर आने वाले समय में खींचतान तेज होती दिखाई पड़ सकती है।
मनमाने तरीके से नियुक्तियों का मामला तूल पकड़ गया
प्रदेश में उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग में भर्ती परीक्षा घोटाला सामने आने के कुछ दिन बाद ही विधानसभा में मनमाने तरीके से नियुक्तियों का मामला तूल पकड़ गया। कांग्रेस ने इस मुद्दे को भी तुरंत लपकते हुए प्रदेश की भाजपा पर तीखे प्रहार कर डाले। पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी विधानसभा में अनियमित नियुक्तियों पर तीखी टिप्पणी की। वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने पिछली भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान विधानसभा में नियुक्तियों का मामला तो उठाया ही, साथ में कांग्रेस की पिछली सरकारों के कार्यकाल में नियुक्तियों की जांच की मांग सरकार से की।
कांग्रेस कार्यकाल की सर्वाधिक 150 नियुक्तियां रद
प्रमुख विपक्षी दल का यही कदम अब निर्णायक साबित हो चुका है। प्रदेश की भाजपा सरकार ने विधानसभा में नियुक्तियों में गड़बड़ी की जांच कराई। जांच रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 2016 में कांग्रेस की तत्कालीन हरीश रावत सरकार के कार्यकाल में हुईं 150 नियुक्तियों समेत कुल 228 नियुक्तियां रद कर दीं। रद नियुक्तियों की अधिक संख्या कांग्रेस सरकार के दौरान रही है। यद्यपि विधानसभा में नियुक्तियों में गड़बड़ी का मामला राजनीतिक रूप से उछलने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इसे आयोग के भर्ती घोटाले से ध्यान भंग करने की कोशिश करार दिया था। तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष व वरिष्ठ कांग्रेस नेता गोविंद सिंह कुंजवाल ने तो बेटे-बहू को विधानसभा में नियुक्ति देने के मामले में माफी भी मांगने में देर नहीं लगाई।
दबाव बनाने में सफलता का श्रेय नहीं ले पा रहा संगठन
अब तत्कालीन कांग्रेस सरकार के कार्यकाल की नियुक्तियां रद होने के बाद कांग्रेस के भीतर अंतर्विरोध देखा जा रहा है। दरअसल प्रमुख विपक्षी दल को यह उम्मीद कम ही थी कि प्रदेश की धामी सरकार इस मामले में इतनी तेजी से कदम उठाएगी। नियुक्तियां रद होने के बाद कांग्रेस पर दबाव भी दिखाई देने लगा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने नियुक्तियां रद होने पर इसे न्याय के विपरीत बता दिया। अनियमित नियुक्तियां रद होने के लिए बनाए गए दबाव का परिणाम अनुकूल रहने के बावजूद कांग्रेस इसे अपनी उपलब्धि बताने में असमर्थ पा रही है। पार्टी की इस स्थिति को अंतद्र्वंद्व का ही परिणाम माना जा रहा है।