Chandrayaan 3 साल 1962 में विक्रम साराभाई के आग्रह पर तत्कालीन जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च को बनाया गया। 15 अगस्त 1969 को इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च की जगह इसरो ने ले ली। आइए जरा पढ़ें कि किस तरह पिछले 61 साल में इसरो नें अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की सफलता को सुनहरे अक्षरों में गढ़ दिया।
“हम अपने लक्ष्य पर कोई संशय नहीं है। हम चांद और उपग्रहों के अन्वेषण के क्षेत्रों में विकसित देशों से होड़ का सपना नहीं देखते, लेकिन राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अर्थपूर्ण भूमिका निभाने के लिए मानव समाज की कठिनाइयों के समाधान में अति-उन्नत तकनीक के प्रयोग में किसी से पीछे नहीं रहना चाहेत।” यह बात भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के जनक डॉ. विक्रम साराभाई ने कही है। पिछले 6 1 सालों में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने स्पेस सेक्टर में कामयाबी की नई गाथा लिखी है।
साल 1962 में विक्रम साराभाई (Vikram Sarabhai) के आग्रह पर तत्कालीन जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च को बनाया गया। 15 अगस्त 1969 को इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च (INCOSPAR) की जगह इसरो ने ले ली।
विक्रम साराभाई को इसरो का पहला चेयरमैन बनाया गया। उसी साल नासा ने अपोलो-11 स्पेसक्राफ्ट से नील आर्मस्ट्रांग, बज एल्ड्रिन और माइकल कॉलिंस को कैनेडी स्पेस सेंटर से चांद का सफर करने के लिए रवाना किया गया। वहीं, सोवियत संघ (रूस) ने साल 1955 में ही अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू कर दिया था।
जब इसरो की नींव रखी गई तो उस समय वैज्ञानिकों का उद्देश्य अंतरिक्ष विज्ञान अनुसंधान और ग्रहों की जानकारी इकट्ठा करना था। इसके अलावा, भू-पर्यवेक्षण, मौसम विज्ञान, संचार दूरसंचार, सामाजिक विकास और आपदा प्रबंधन से जुड़ी जानकारी प्राप्त करना था। लेकिन, विक्रम साराभाई और सतीश धवन वैज्ञानिकों का लक्ष्य कुछ और बड़ा था। इसरो बनने से पहले भारत ने नाइक अपाचे और रोहिणी-75 को लॉन्च किया था।
जब भारत ने लॉन्च किया अपना पहला सैटेलाइट
वक्त के साथ इसरो का लक्ष्य भी बड़ा बनता चला गया और 19 अप्रैल 1975 को इसरो को सबसे बड़ी कामयाबी तब मिली जब 360 किलोग्राम वजनी सैटेलाइट आर्यभट्ट Aryabhata (satellite) को लॉन्च किया। इसके बाद इसरो ने दूसरा सैटेलाइट भास्कर-1 लॉन्च किया था।
चांद पर पहुंचने की तैयारी हुई शुरू
इसरो का अगला लक्ष्य ‘मून मिशन’ यानी चांद से जुड़ी अहम जानकारियों को एकत्र बन गया। 21वीं सदी की शुरुआत के साथ ही इसरो ने चंद्रयान-1 मिशन पर काम करना शुरू कर दिया। 22 अक्टूबर 2008 को एसडीएससी शार, श्रीहरिकोटा से चंद्रयान-1 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया। चंद्रयान-1 चांद की सतह से तकरीबन 100 किलोमीटर ऊपर चक्कर काट रहा था।
क्या था मिशन का उद्देश्य
चंद्रमा पर केमिकल और मिनरलोजिकल की जानकारी एकत्र करना।
चांद की सतह की तस्वीरें खींचना।
चांद की जियोलॉजिकल मैंपिग करना।
इस मिशन का समापन 29 अगस्त 2009 को हुआ जब इसरो का इस चंद्रयान-1 यान से संपर्क टूट गया।
मंगलयान मिशन
चांद की जानकारी प्राप्त करने के बाद अब बारी थी मंगल के रहस्यों से पर्दा उठाने की। इसरो ने मंगलयान मिशन पर काम करना शुरू कर दिया। मंगल ग्रह की जानकारी प्राप्त करने के लिए श्रीहरिकोटा से 5 नवंबर 2013 को मंगलयान-1 को लॉन्च किया गया। इस ग्रह पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने वाले भारत तीसरा देश बन गया। इससे पहले अमेरिका और रूस ने मंगल ग्रह पर सैटेलाइट भेज दिए थे। गौरतलब है कि भारत पहला ऐसा देश बना जब एक ही प्रयास में मंगल ग्रह तक पहुंच गया। इस मिशन की लागत 450 करोड़ थी, जो अमेरिका और रूस के मिशन की तुलना में काफी कम थी।
चंद्रयान-2 का सफर..
चंद्रयान-1 से संपर्क टूटने के 10 साल बाद चंद्रयान-2 को श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया। यह इसरो के वैज्ञानिकों के लिए एक कठिन मिशन था, क्योंकि चंद्रयान-2 के लैंडर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना था, जहां पर अभी तक किसी देश की मौजूदगी नहीं है।
क्या था मिशन का लक्ष्य
चांद के दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद खनिज पदार्थ का पता लगाना।
पानी की मौजूदगी का पता लगाना।
इस क्षेत्र में मौजूद मिट्टी और पत्थर की जानकारी का पता लगाना।
चंद्रयान-2 को जीएसएलवी एमके-3 एम1 रॉकेट से लॉन्च किया गया था। दो सितंबर को ऑर्बिटर, लैंडर सफलतापूर्वक अलग हुआ,लेकिन लैंडर विक्रम चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने से चूक गया। हालांकि, रोवर सफलतापूर्वक चांद की कक्षा में स्थापित हो गया।
इतिहास रचने के लिए तैयार इसरो
चंद्रयान 3 को 14 जुलाई 2023 को श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से एलएमवी-3 द्वारा लॉन्च किया गया। चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने के लिए विक्रम लैंडर आज पूरी तरह तैयार है। पूरी दुनिया को उम्मीद है कि चंद्रयान-2 मिशन के जरिए जो सपना देखा गया था उसे चंद्रयान-3 (Chandrayaan 3 Live Updates) जरूर पूरा करेगा।