भूमाफिया की जुर्रत तो देखिए काबुल हाउस की करीब 400 करोड़ रुपये की संपत्ति को हड़पने के लिए क्या कुछ नहीं किया गया। वर्ष 2007 में नैनीताल हाई कोर्ट के केस को जिलाधिकारी को रिमांड करने के बाद भी इसका निस्तारण नहीं करने दिया गया। अधिकारियों से मिलीभगत से न सिर्फ इस संपत्ति को सहारनपुर निवासी अब्दुल रज्जाक के नाम दर्शाकर मो. साहिल खालिद को फर्जी वारिश बना दिया गया। इसके बाद तीसरे व्यक्ति मो. आरिफ खान के नाम पावर आफ अटार्नी बनाकर संपत्ति पर रजिस्ट्री भी कराई जानी शुरू कर दी गई।
जिलाधिकारी सोनिका की कोर्ट में सुनवाई के दौरान यह तथ्य रखे गए कि काबुल हाउस के मालिक याकूब खान की मृत्यु वर्ष 1921 में हो गई थी। इस क्रम में इनके वंशज सरदार मो. आजम खान, सरदार अली खान, सुल्तान अहमद खान के नाम नगर पालिका के असेसमेंट वर्ष 1934-37, वर्ष 1943-1948 में अंकित हैं।
यह भी उल्लेख किया गया कि अमीर आफ काबुल याकूब खान के वंशजों ने वर्ष 1947 में भारत छोड़ दिया था। जिसके बाद भूमि को रिक्त घोषित कर दिया गया। वर्ष 1958 में उत्तर प्रदेश सरकार में जांच के बाद लावारिश संपत्तियों को कस्टोडियन एक्ट-1950 प्रविधानो के मुताबिक निष्क्रांत संपत्ति घोषित कर नगर निकायों के रिकार्ड में कस्टोडियन दर्ज किया गया।
संवैधानिक रूप से बंदोबस्त प्रक्रिया न होने का उठाया लाभ
जिलाधिकारी के आदेश के मुताबिक वर्ष 1937-38 में बंदोबस्त के समय शहरी क्षेत्रों में एक ही खसरा नंबर राजस्व रिकार्ड में अंकित किया जाता था। इससे यह हुआ कि तत्कालिक शहरी क्षेत्रों में अलग-लग खेवट निर्धारित होने के बाद भी यह स्पष्ट नहीं हो पाता था कि किस खेवट का खसरा नंबर क्या है। शहरी क्षेत्र के देहरादून में बंदोबस्त की संवैधानिक प्रक्रिया न होने के चलते वर्ष 1947 में देश के बंटवारे के बाद राजस्व रिकार्ड में कस्टोडियन संपत्ति दर्ज नहीं हो पाई। ऐसी संपत्ति का अंकन मुस्लिम समाज की भूमि के रूप में किया गया। अभिलेखीय परीक्षण में पाया गया कि यही भूमि कस्टोडियन से संबंधित है। इसके चलते काबुल हाउस की संपत्ति से मो. साहिल खालिद की विरासत खारिज कर दी गई।
कोई संपत्ति है तो फर्जीवाड़ा कर उसे काबुल हाउस बताया गया
सुनवाई के दौरान जिलाधिकारी सोनिका की कोर्ट में यह बात भी सामने आई कि यदि अब्दुल रज्जाक की कोई संपत्ति खेवट संख्या 47 है तो उसे फर्जीवाड़ा कर काबुल हाउस की 15,15-बी दर्शाकर विक्रय किया जाता रहा। इसी खेवट के आधार पर मो. साहिल खालिद ने फर्जी वारिश के रूप में अपना नाम काबुल हाउस की भूमि पर दर्ज करा दिया।
सिविल कोर्ट को किया गुमराह, लिया स्टे
काबुल हाउस की संपत्ति को हड़पने के लिए भूमाफिया गिरोह ने हाई कोर्ट के वर्ष 2007 के स्थगनादेश का संज्ञान होने के बाद भी फर्जीवाड़ा कर डाला। उसने सिविल कोर्ट पंचम को हाई कोर्ट के आदेश की जानकारी न देकर अपने पक्ष में स्टे प्राप्त कर लिया।
जिला शासकीय अधिवक्ता ने सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए तर्क दिया कि सिविल कोर्ट पंचम के डिक्री आदेश के विरुद्ध हाई कोर्ट में सरकार ने अपील दायर की गई। जिसे हाई कोर्ट ने स्वीकृति दी है और यह प्रकरण लंबित है। हालांकि, सरकार के विरुद्ध डिक्री हाई कोर्ट के वर्ष 2007 के आदेश को छिपाते हुए प्राप्त की गई है, लिहाजा सिविल कोर्ट का आदेश निष्प्रभावी माना जाएगा। साथ ही मो. खालिद की विरासत खारिज होने की दशा में उनके समस्त विक्रय पत्र भी शून्य माने जाएंगे।
30 व्यक्तियों को बेची जमीन, दर्ज होगा मुकदमा
जिलाधिकारी सोनिका की कोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि काबुल हाउस की संपत्ति पर भूमाफिया ने 30 रजिस्ट्री की हैं। इसी के आधार पर यहां 17 लोग अवैध रूप से काबिज हो गए। जिलाधिकारी ने आदेश दिए कि सभी विक्रय पत्र कब्जे में लिए जाएं। इस बात की जांच की जाए कि मो. साहिल का नाम सरकारी रिकार्ड में किन कार्मिकों आदि की मिलीभगत से दर्ज कराया गया। प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए मो. खालिद व उनके सहयोगियों के विरुद्ध आपराधिक वाद दर्ज कराया जाए। इस बाबत आदेश की प्रति अलग से वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) को भेजी जाए।