जनसंख्या नियंत्रण का विषय भले ही उत्तराखंड के लिए बनाई गई समान नागरिक संहिता की सीमा से बाहर रखा गया हो, लेकिन संहिता का ड्राफ्ट तैयार करने वाली विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट में प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों से हो रहे पलायन और मैदानी क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय में आए परिवर्तन काे निशाने पर लिया है। यद्यपि रिपाेर्ट में यह उल्लेख उत्तराखंड के सामान्य परिचय के संदर्भ के रूप में सीमित है, लेकिन यही संकेत भविष्य में जनसंख्या नियंत्रण और नए भू-कानून को लेकर उठने वाले स्वरों को बल देने के तौर पर देखा जा रहा है।
जनसंख्या नियंत्रण को लिया ही नहीं गया
समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञ समिति को जिन बिंदुओं पर काम करने का दायित्व दिया गया था, उनमें जनसंख्या नियंत्रण को लिया ही नहीं गया। इसी कारण समिति ने भी समान नागरिक संहिता को कानून बनाने के संबंध में तैयार किए गए ड्राफ्ट में इस बिंदु को नहीं लिया। ध्यान देने योग्य यह भी है कि समान नागरिक संहिता की आवश्यकता के लिए जिन विषयों को केंद्र में रखकर चर्चा आगे बढ़ी, उनमें उत्तराखंड राज्य बनने के बाद इस क्षेत्र में तेजी से जनसांख्यिकीय परिवर्तन प्रमुख रूप से सम्मिलित रहा है। विशेषज्ञ समिति ने अपने ड्राफ्ट में इस विषय से दूरी बनाए रखी। यह अलग बात है कि समिति ने समान नागरिक संहिता के समर्थन को पुष्ट करने वाली अवधारणाओं से संबंधित अपनी रिपोर्ट के खंड-एक के अध्याय-दो में उत्तराखंड के बारे में दिए गए सामान्य परिचय में जनसांख्यिकीय और उसमें तेजी से हो रहे परिवर्तन का विशेष उल्लेख किया है।
पहाड़ों से पलायन तेज, मैदानों में जनसंख्या वृद्धि दर 30 प्रतिशत
समिति ने वर्ष 2011 की जनगणना का हवाला देते हुए वर्ष 2001 से लेकर वर्ष 2011 में पर्वतीय क्षेत्रों से तेजी से पलायन और मैदानी शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या में 30.23 प्रतिशत की वृद्धि दर को रेखांकित किया है।
इसी अवधि में दो पर्वतीय जिलों अल्मोड़ा और पौड़ी में जनसंख्या दर में तेजी से कमी आई है।
रिपोर्ट में उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों से सटे हुए उत्तर प्रदेश के इलाकों से पलायन का भी उल्लेख किया गया है।
जनसंख्या के आंकड़ों के अनुसार हिंदुओं की 83 प्रतिशत, मुस्लिमों की 13.9 प्रतिशत, सिखों की 2.3 प्रतिशत, ईसाइयों की 0.4 प्रतिशत और बुद्धिस्ट की 0.1 प्रतिशत आबादी है।
धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक समुदायों की संख्या प्रदेश के मैदानी क्षेत्र में अधिक है।
हरिद्वार जिले और ऊधम सिंह नगर जिलों में मुस्लिम आबादी क्रमश: 34.3 प्रतिशत और 22.6 प्रतिशत बताई गई है। अन्य अल्पसंख्यक समुदायों में सिख, जैन की जनसंख्या वृद्धि दर मुस्लिम और ईसाइयों की तुलना में काफी कम है।
जनजाति जनसंख्या का भी विवरण समिति ने दिया है।
पड़ोसी प्रदेश से आने वालों की बढ़ रही संख्या
विशेषज्ञ समिति ने राज्य में भीतरी और बाहरी क्षेत्रों से हो रहे पलायन और जनसंख्या वृद्धि दर के लिए प्रदेश की तेज आर्थिक विकास दर को बड़ा कारक माना है। पलायन आयोग के आंकड़ों का उल्लेख करते हुए बताया गया कि वर्ष 2018 से वर्ष 2022 के बीच राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों से 3.3 लाख व्यक्तियों का पलायन हुआ। वर्ष 2008 से वर्ष 2018 के बीच यानी 10 वर्ष की अवधि में 5.2 लाख व्यक्तियों ने पलायन किया। अल्प अवधि के पलायन ने अब स्थायी रूप ले लिया है। परिणामस्वरूप पर्वतीय क्षेत्रों के 1792 गांव घोस्ट विलेज में परिवर्तित हो चुके हैं। इनमें से अधिकतर गांव अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के समीप हैं, जो राष्ट्र की सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील हैं। निर्वाचन आयोग की मतदाता सूचियों का उल्लेख करते हुए मैदानी क्षेत्रों के मतदाताओं की संख्या में 30 प्रतिशत की वृद्धि का जिक्र भी विशेषज्ञ समिति ने किया है।
विशेषज्ञ समिति ने रिपोर्ट में उत्तराखंड की वस्तुस्थिति से कराया परिचय: शत्रुघ्न सिंह
विशेषज्ञ समिति ने उत्तराखंड के संदर्भ में यह स्पष्ट किया है कि प्रदेश जनसांख्यिकीय परिवर्तन में तेजी आई है। समान नागरिक संहिता के समर्थन में तेजी से उठे सुरों के पीछे यह महत्वपूर्ण कारक रहा है। समान नागरिक संहिता के अंतर्गत परिवार से संबंधित कानूनों से जनसंख्या नियंत्रण और जनसांख्यिकीय में बदलाव, दोनों विषय मेल नहीं खाते। ऐसे में भविष्य में जनसंख्या नियंत्रण और कड़े भू-कानून को विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में सम्मिलित इन तथ्यों से बल मिल सकता है। विशेषज्ञ समिति के सदस्य रहे एवं वर्तमान में समान नागरिक संहिता के लिए बनाई जा रही नियमावली समिति के अध्यक्ष शत्रुघ्न सिंह ने कहा कि विशेषज्ञ समिति ने उत्तराखंड की वस्तुस्थिति को परिचय के रूप में अपनी रिपोर्ट में सम्मिलित किया है।